पूजा के बारे में
ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च। नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः।। पूर्वजन्म के विविध पुण्य अथवा पाप कर्म के फलस्वरूप इस जन्म में मानव को सुख तथा दु:खों की प्राप्ति होती है। पूर्व जन्म के पाप अथवा पुण्य कर्मों का ज्ञान जन्म कुण्डली के माध्यम से ही होता है। जन्मकुण्डली में जन्म के समय के आकाश में विराजमान ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति का रेखाचित्र वर्णित रहता है। उस जन्म-समय के अनुसार प्राप्त ग्रहयोगों के माध्यम से गुण और दोषों की समीक्षा की जाती है। पितृ दोष मुख्य रूप से एक पितृ-श्राप है। योग्य व विद्वान् ज्योतिषी जन्मकुण्डली को देखकर इस पितृदोष के बारे में बता सकते हैं। इस दोष के कारण जीवन में बहुत समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे- बाल्यकाल में रोग, शिक्षा में रूकावट, शिक्षा में मन ना लगना, युवावस्था में विभिन्न विषयों के प्रति आसक्ति तथा व्यसन में संलग्नता, योग्यता के अनुरूप नौकरी ना मिलना,अथक प्रयास और संघर्ष करने के बाद भी जीवन का निर्वाह साधारण रूप से होना तथा विवाह में विलम्ब, विवाह के उपरान्त सन्तान प्राप्ति में बाधा, घर-परिवार में कलह, बिना अपराध के न्यायालय के द्वारा कारावास आदि का दण्ड तथा पारिवारिक सदस्यों की असमय रोग, विष, आत्महत्या अथवा दुर्घटना आदि विभिन्न कारणों से मृत्यु होना अथवा असाध्य रोगों से ग्रसित होकर लम्बे समय तक बिस्तर पर पड़े रहना आदि अनेक प्रकार के विषय हैं। इस पूजा के दौरान पितृ गायत्री मंत्र का जाप किया जाता है और आपके पितरों की शान्ति के लिए प्रार्थना की जाती है। विधि पूर्वक इस पूजा को संपन्न करने से वंशवृद्धि होती है और आपकी आने वाली 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है।
मंदिर की जानकारी
बिहार में पवित्र फल्गु नदी के किनारे बसे हुए गया शहर का हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान है। इस पवित्र मोक्षधाम गयाजी में पितृ दोष निवारण के लिए पिंडदान और तर्पण कर के पितरों की शांति करवाई जाती है। पितृ शांति के लिए देश के सभी 55 मान्यता प्राप्त स्थानों में गया जी धाम सबसे प्रमुख है। गयासुर नाम के राक्षस को ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त था की उसके दर्शन कर के कोई भी पापमुक्त हो जायेगा, जिसके परिणामस्वरूप धरती पर लोग भयमुक्त होकर पाप करने लगे। आखिर में विष्णु भगवान ने अपनी गदा से उसका वध कर दिया और इसी कारण विष्णु जी को गया जी तीर्थ पर मुक्तिदाता माना जाता है। इस पावन धाम पर किसी मनुष्य का श्राद्ध, पिंड दान, तर्पण आदि करने से उसे पुनः मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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